अनुवाद क्या है .
अनुवाद के बारे में कई परिभाषाये है, कम शब्दों में ट्रांसलेशन Translation एक Language के Content का उसके मूल भाव के साथ उसके अर्थ को दूसरी भाषा के शब्दों में निरूपित करना ही
Translation है . अनुवाद करने वाले को अनुवादक ( Translator) और अनुवाद की हुई रचना को अनूदित(
Translated) कहते हैं। अनुवाद की श्रेष्ठता अनुवादक की योग्यता पर निर्भर है। अनूदित रचना Translator के लिए ये आवश्यक होता है कि मूल लेखों के भावों
की पूर्ण रक्षा की जाय और अनूदित रचना में वही शक्ति हो
जो मूल रचना में वर्त्तमान है। मूल लेखक के विचारों से असहमत होते हुए भी अनुवादक को उसी के विचारों को प्रकट करना पड़ता हैं। अतः अनुवादक को तभी सफलता मिलती है वह दोनों भाषाओं के शब्दों, मुहावरों, कहावतों और शक्तियों का ठीक-ठीक ज्ञान रखता है। अँग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करते समय अँग्रेजी और हिन्दी व्याकरण की भित्र-भित्र विशेषताओं को ध्यान में रखना आवश्यक है ।
अनुवाद के प्रकार ( Kind of Translation)
(1) शब्दानुवाद या अविकल अनुवाद (Literal translation)
(2) भावानुवाद (Faithful translation)
(2) भावानुवाद (Faithful translation)
(1) शब्दानुवाद (Literal Translation)-
यह मूल भाषा का शाब्दिक अनुवाद हैं। कि शब्दों पर ध्यान रख कर अनुवाद करना अनुचित है। इससे अर्थ का अनर्थ हो सकता है और मूल अर्थ ही विकृत हो जायेगा। अतः शब्दानुवाद एक खतरा है, जिससे भरसक बचना चाहिए। यह स्मरण रखना चाहिए कि अनुवाद शब्दों का नहीं अर्थों का होता है।
यह मूल भाषा का शाब्दिक अनुवाद हैं। कि शब्दों पर ध्यान रख कर अनुवाद करना अनुचित है। इससे अर्थ का अनर्थ हो सकता है और मूल अर्थ ही विकृत हो जायेगा। अतः शब्दानुवाद एक खतरा है, जिससे भरसक बचना चाहिए। यह स्मरण रखना चाहिए कि अनुवाद शब्दों का नहीं अर्थों का होता है।
(2) भावानुवाद (Faithful translation)-
लेखक के मूल भावों या अर्थों को अपनी भाषा में प्रकट कर देना 'भावानुवाद' है। अँग्रेजी में इसे 'Faithful translation' कहते हैं। इसमें यह देखना पड़ता है कि मूल भाषा का एक भी भाव छूटने न पाये। इसकी सफलता इस बात में है कि मूल भाषा के सभी भाव दूसरी भाषा में रूपान्तरित हो जायँ। यहाँ अनुवादक का ध्यान शब्दों पर न जा कर विशेष रूप से मूल भाव पर रहता हैं।
लेखक के मूल भावों या अर्थों को अपनी भाषा में प्रकट कर देना 'भावानुवाद' है। अँग्रेजी में इसे 'Faithful translation' कहते हैं। इसमें यह देखना पड़ता है कि मूल भाषा का एक भी भाव छूटने न पाये। इसकी सफलता इस बात में है कि मूल भाषा के सभी भाव दूसरी भाषा में रूपान्तरित हो जायँ। यहाँ अनुवादक का ध्यान शब्दों पर न जा कर विशेष रूप से मूल भाव पर रहता हैं।
''भावानुवाद में हम मूल भाषा के शब्दों को
तोड़-मरोड़ सकते हैं, वाक्यों को आगे-पीछे कर सकते हैं, मुहावरों को अपने साँचे में ढाल सकते हैं, लेकिन वाक्यों को अपने इच्छानुसार घटा-बढ़ा नहीं सकते। भावानुवाद तात्पर्य में, आकार-प्रकार में, मूल भाषा से बिल्कुल मिलता-जुलता हैं। इसमें न अपनी ओर से निमक-मिर्च लगा सकते हैं, न लम्बी-चौड़ी भूमिका बाँध सकते हैं। जो बात जिस उद्देश्य को ले कर जिस ढंग से कही गयी हैं, उस बात को, उसी उद्देश्य से और जहाँ तक हो उसी ढंग से कहना पड़ता हैं।''
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